Shri Sadhguru Darbar
प्रभुजी का संदेश
श्री रामलाल प्रभुजी कहते हैं:
“जीवन का वास्तविक उद्देश्य है अपने भीतर के दिव्य तत्त्व को पहचानना और उसी से जीवन को संचालित करना। जब साधक जीवन तत्त्व से जुड़ जाता है, तब हर क्षण ध्यान, हर कर्म सेवा और हर श्वास पूजा बन जाती है।”


श्री रामलाल प्रभवे नमः

महाशक्ति के अवतार योगेश्वर रामलाल महाप्रभु जी ने चिरगुप्त योग-विद्या के पुनरुद्घार व इस कलिकाल में योग जैसे महान, गोपनीय साधन प्रदान करने के लिए पंजाब के अमृतसर नगर में रामनवमी के पावन दिवस पर अवतार लिया।
महाप्रभु जी त्रिकालदर्शी ज्योतिष, वैद्य व योग विद्या के सम्पूर्ण ज्ञाता थे। उन्होंने मर्यादावश हिमालय में वर्षों समाधि कर अष्टांग योग को सिद्ध किया और योग के साधनों को जनसाधारण व गृहस्थियों के लिए सरल बनाया, जिसको जीवन तत्त्व साधन नाम दिया |
श्री महाप्रभु जी ने योग का दिव्य प्रकाश फैलाने हेतु अमृतसर, लाहौर, ऋषिकेश व हरिद्वार इत्यादि स्थानों पर अनेकों योग साधन आश्रमों की स्थापना की तथा शक्तिपात दीक्षा, जीवन तत्व (काया कल्प) के सरल साधनों द्वारा अनेकानेक साध्य असाध्य रोगों का निवारण किया।
ॐ प्रभु रामलाल परब्रह्मणे नमः
श्री चंद्रमोहन गुरुवे नमः

महाशक्ति के अवतार योगेश्वर रामलाल महाप्रभु जी ने चिरगुप्त योग-विद्या के पुनरुद्घार व इस कलिकाल में योग जैसे महान, गोपनीय साधन प्रदान करने के लिए पंजाब के अमृतसर नगर में रामनवमी के पावन दिवस पर अवतार लिया।
महाप्रभु जी त्रिकालदर्शी ज्योतिष, वैद्य व योग विद्या के सम्पूर्ण ज्ञाता थे। उन्होंने मर्यादावश हिमालय में वर्षों समाधि कर अष्टांग योग को सिद्ध किया और योग के साधनों को जनसाधारण व गृहस्थियों के लिए सरल बनाया, जिसको जीवन तत्त्व साधन नाम दिया |
श्री महाप्रभु जी ने योग का दिव्य प्रकाश फैलाने हेतु अमृतसर, लाहौर, ऋषिकेश व हरिद्वार इत्यादि स्थानों पर अनेकों योग साधन आश्रमों की स्थापना की तथा शक्तिपात दीक्षा, जीवन तत्व (काया कल्प) के सरल साधनों द्वारा अनेकानेक साध्य असाध्य रोगों का निवारण किया।
ॐ प्रभु रामलाल परब्रह्मणे नमः
परम योगिनी माँ उमा शक्तये नमः

गुरुदेव श्याम सूंदर

गुरुदेव श्याम सुंदर एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक, योगी और ध्यान साधक हैं, जिन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन मानवता की सेवा और प्रत्येक व्यक्ति के भीतर छिपी हुई आंतरिक शक्ति को जागृत करने के लिए समर्पित किया है। उनका विश्वास है कि हर इंसान के भीतर अनंत ऊर्जा विद्यमान है, जिसे ध्यान, योग और सात्विक जीवन शैली के माध्यम से जागृत किया जा सकता है।
बहुत कम उम्र से ही उन्होंने सत्य और ज्ञान की खोज में अपनी आध्यात्मिक यात्रा आरंभ की। प्राचीन योगिक शास्त्रों, वेदांत और ध्यान साधनाओं का गहन अध्ययन करते हुए उन्होंने कठोर अनुशासन और साधना के माध्यम से ऐसा मार्ग विकसित किया, जो आज के व्यस्त और तनावपूर्ण जीवन के लिए भी अत्यंत प्रासंगिक और व्यावहारिक है।
गुरुदेव जी की शिक्षाएँ सरलता और व्यावहारिक जीवन पर आधारित हैं। वे यह बताते हैं कि अध्यात्म केवल कक्षाओं या आश्रमों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसे जीवन के प्रत्येक पहलू में समाहित करना आवश्यक है। उनके ध्यान और योग कार्यक्रमों से हजारों लोग तनाव, चिंता और आंतरिक द्वंद्व से मुक्त होकर जीवन में शांति और संतुलन प्राप्त कर चुके हैं।
वे प्रायः कहते हैं:
"सच्ची सफलता वही है, जब मन, शरीर और आत्मा में सामंजस्य हो। जब भीतर शांति हो, तभी बाहर की समृद्धि टिक सकती है।"
आज, गुरुदेव श्याम सुंदर जी के मार्गदर्शन में ओएम ऑरा इंस्टिट्यूट ऑफ इनर कॉन्शियसनेस और एसआरएमएस फाउंडेशन जैसे उपक्रम ध्यान, योग और निःस्वार्थ सेवा का संदेश समाज के सभी वर्गों तक पहुँचा रहे हैं। उनका जीवन मिशन है |
"हर घर में ध्यान, हर मन में शांति।"
जीवन का उद्देश्य
मानव-जीवन का उद्देश्य शाश्वत सुख और कभी न मिटने वाली शान्ति को प्राप्त कर लेना ही बताया गया है। योग-दर्शन का उद्देश्य भी यही है कि आत्मा फिर-फिर जन्म-मरण के निरन्तर चलने वाले चक्र से मुक्त होकर अपने को उस परम सत्ता में लय कर दे जिसे पाकर और कुछ पाना फिर शेष नहीं रहता। सन्त और महामानव सभी इसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए निरन्तर मानव के जाग्रत करने का प्रयास करते रहें हैं। आइए पढ़ें इस सम्बन्ध में सन्त समुदाय की विचारधारा को हम इस लेख में।
नाना प्रकार के सांसारिक पदार्थों और सुख-सुविधा के साधनों के होते हुए भी आज मनुष्य सुखी नजर नहीं आता। उसे अपने आप से या संसार के पदार्थों से कोई सन्तोष नहीं होता। धार्मिक सिद्धान्तों तथा सदाचार के नियमों की भी आज कोई कमी नहीं है। प्रत्येक मनुष्य अपने आपको किसी एक अथवा दूसरे धर्म या सम्प्रदाय का अनुयायी मानता है, परन्तु आज उसे सांसारिक समृद्धि में कोई सुख तथा धार्मिक परम्पराओं में कोई रस नहीं मिलता। उसे जीवन ही नीरस लगता है। सब कुछ होते हुए भी उसके अन्तर में आकुलता और अकेलेपन की भावना बनी रहती हैं। यही आत्मा का अपने असल की ओर स्वाभाविक झुकाव है। आत्मा परमात्मा का अंश है। जब तक वापस जाकर वह अपने मूल में - परमात्मा में नहीं समाता उसे सच्ची शान्ति प्राप्त नहीं हो सकती।
वास्तव में सच्चा धर्म सर्वव्यापी है, हर एक मनुष्य के लिए सारे संसार के लिए एक ही है, धर्मों का बाहरी स्वरूप एक-दूसरे से भिन्न अवश्य प्रतीत होता है, पर अगर एक धर्म की तह में पहुँचा जाये तो एक ही उद्देश्य तथा एक ही नियम सब धर्मों की बुनियाद में काम करता नजर आयेगा, जो सारे संसार के लिए एक ही है। मनुष्य होने के नाते हम सब एक ही मानव जाति के हैं तथा हमारा आन्तरिक आधार भी एक ही है। परमात्मा ने मनुष्य पैदा किये, वे सिक्ख, मुसलमान, हिन्दू, ईसाई, बौद्ध, जैन आदि बाद में बने। आज से पाँच सौ साल पहले सिक्ख नहीं थे, तेरह सौ वर्ष पूर्व मुसलमान नहीं थे। दो हजार वर्ष पूर्व ईसाईयों का नाम तक न था । धर्म, देश और जाति की ये संकचित सीमाएँ हमारी अपनी बनाई हुई हैं। वास्तव में सब मनुष्य, क्या पूर्व के और क्या पश्चिम के , उस एक ही परमात्मा के पैदा किए हुए हैं और समान हैं, एक हैं।
मनुष्य जन्म का असली उद्देश्य परमात्मा की प्राप्ति है। आवागमन के चक्कर से छुड़ाकर मनुष्य को वापस परमात्मा से मिलाने के लिए हर देश और समय में सन्त इस संसार में आते रहे हैं। सन्तों की यह परम्परा अनादिकाल से चली आ रही है। सब सन्तो महात्माओं का हमेशा एक ही धर्म रहा है, वह है परमात्मा की भक्ति सबके लिए उनका एक ही उपदेश है, एक ही सन्देश है। 'परमात्मा एक है। वह किसी विशेष जाति या धर्म का नहीं, बल्कि सारे संसार का है। उसकी प्राप्ति ही सब धर्मों का असली उद्देश्य है।
सन्त कहते हैं कि परमात्मा बाहर जंगलों-पहाड़ों अथवा मन्दिरों-मस्जिदों में नहीं है। वह हमारे सबके अन्दर है। बाहरी क्रियाओं, रीति-रिवाजों आदि से न वह कभी मिला है न मिल सकेगा। उसको प्राप्त करने के लिए घरबार छोड़कर बाहर भटकने की जरूरत नहीं। संसार में रहते हुए, संसार के कर्तव्यों को पूरा करते हुए हमें उसे अपने अन्दर हो ढ़ूँढ़ना है और यह अन्दर ही मिलेगा। अन्दर होने का यह भेद केवल सन्त ही जानते हैं और इस भेद को उन्हीं से प्राप्त किया जा सकता है।
यह मनुष्य जन्म अनमोल है, बार-बार नहीं मिलता। मनुष्य जन्म ही परमात्मा के मिलने का अवसर है। यही मुक्ति प्राप्त करने का मौका है। चौरासी के चक्कर में चिर काल तक भटकने के बाद हमें मालिक से मिलने का यह अवसर मिला है। सन्त पुकार पुकार कर कहते हैं कि इस अमूल्य अवसर का लाभ उठाओ। परमात्मा की भक्ति का मार्ग अपनाकर इसी जन्म में जीते जी मुक्ति प्राप्त करो।



